Sunday, 24 September 2017

भारत में काॅफी का विकास

सुबह उठने के बाद हम सभी को चाय या काॅफी का इंतजार रहता ही है। हममें से बहुत लोगों को यदि सुबह-सुबह ये पेय न मिले, तो दिमाग फ्रेश नहीं होता। जो लोग रात भर काम करते हैं, उनके लिए भी काॅफी किसी वरदान से कम नहीं है। यहाँ पर लोग बरिस्ता जैसे हाई क्वालिटी के कैफे में भी काॅफी पीते हैं और घर पर एक रूपये के पैकेट वाली कॉफी भी बनाते हैं। भारत में काॅफी मुख्य पेय पदार्थों में से एक है। लेकिन 17वीं सदी के पहले भारत में काॅफी का नामोंनिशान तक मौजूद नहीं था। भारत में काॅफी लाने का श्रेय एक सूफी संत बाबा बूदान को जाता है। बाबा बूदान जब हज करके भारत वापस आ रहे थे, तो उन्होंने मोका यमन के पोर्ट से सात काॅफी बीन्स लिए और उसे लेकर भारत आ गये। इन काॅफी बीन्स को कर्नाटक के चिक्कामगलुर जिले में चंद्रगिरी की पहाड़ियों पर उगाया गया और आजकल इसे बाबा बुदान गिरी या बाबा बुदान फाॅरेस्ट के नाम से जाना जाता है। 
       
        बाबा बुदान ने 17वीं सदी में सात काॅफी बीन्स लाकर एक नयी शुरूआत की थी, क्योंकि उस समय काॅफी पर अरब साम्राज्य का एकाधिकार था और वे उन्हें सिर्फ roasted या boiled form में ही बाहर ले जाने देते थे। वे नहीं चाहते थे कि उनके अलावा कोई दूसरा देश काॅफी का व्यापार करे। बाबा बुदान के संत होने की वजह से उन्हें इन काॅफी बीन्स को भारत लाने में कोई दिक्कत नहीं हुयी। उनके द्वारा काॅफी को लाने के बाद, कर्नाटक के अलावा तमिलनाडु व केरल में भी बड़े पैमाने पर काॅफी के बागान लगाये गये। भारत में उगायी जाने वाली काॅफी दुनिया भर में सबसे अच्छी गुणवत्ता की काॅफी मानी जाती है, उसका कारण यह है कि इसे छाया में उगाया जाता है।
     
 काॅफी शब्द, अरबी शब्द 'कावा' से बना है, जिसका अर्थ वायु होता है। सबसे पहले इथियोपिया के लोगों ने काॅफी के बारे में जाना था। ऐसा माना जाता है कि 9वीं सदी में इथियोपिया में रहने वाले काल्दी नाम के माली ने देखा कि उसकी बकरियाँ काॅफी खाकर अधिक ऊर्जावान रहती हैं। इसके बाद तो काॅफी इथियोपिया से होते हुए यमन में पहुँचा और फिर वहाँ से पूरी दुनिया में कॉफी का विस्तार हुआ। बहुत से लोगों ने तो काॅफी का इस्तेमाल रात भर जगने के लिए भी किया, क्योंकि उन्हें काॅफी पीने से नींद नहीं आती थी। वैसे आज भी काॅफी या चाय का इस्तेमाल रात को जगने के लिए किया जाता है। मोका यमन में 'ओमर' नाम के एक हकीम तो काॅफी का इस्तेमाल अपने मरीजों के लिए भी करते थे। 
        
         पहले भारत में काॅफी में शक्कर की जगह शहद का इस्तेमाल होता था। 17वीं और 18वीं सदी में अच्छी काॅफी की पहचान दूध के द्वारा की जाती थी और इस प्रकार की काॅफी को डिग्री काॅफी कहा जाता था। इसमें मिलाया गया दूध एकदम शुद्ध होता था और इस तरह का काॅफी पीना अमीर होने की पहचान माना जाता था।

     
  भारत में पहला काॅफी शाॅप, प्लासी की युद्ध के बाद कोलकाता में खोला गया। काॅफी की उत्पादकता व गुणवत्ता को बढ़ाने के उद्देश्य से भारत में पहला काॅफी रिसर्च सेंटर 1925 में चिक्कामगलुर जिले में बेलेहोनर के पास स्थापित किया गया। 1936 में भारतीय काॅफी हाऊस की पहली चेन की शुरूआत हुई और सबसे पहले इसे मुम्बई में खोला गया, फिर कोलकाता और केरल में भी इसके ब्रांचेस खोले गये। 1970 तक आते-आते भारत में काॅफी ने एक पूरा उद्योग खड़ा कर दिया था। काॅफी की इस जरूरत को महसूस करते हुए सन् 1942 में काॅफी बोर्ड की नींव रखी गयी। भारत का काॅफी बोर्ड, एक स्वायत्त निकाय है, जो वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय; भारत सरकार के अधीन कार्य करता है।
       आज भारत में करीब 1,71,000 काॅफी के बागान हैं; जहाँ नौ लाख एकड़ की जमीन पर काॅफी ऊगायी जाती है। भारतीय दुनिया का छठे नम्बर का काॅफी पैदा करने वाला देश है। यहाँ पर पूरी दुनिया की 4.5% काॅफी ऊगायी जाती है। साल 2015 में भारत ने 349,980,000 kg काॅफी बीन्स का उत्पादन किया था। तो भारत में काॅफी की जो यात्रा सात बीन्स से शुरू हुयी थी, उसने आज बढ़कर एक बड़े कारोबार का शक्ल ले लिया है। 

                                                                                                 ( फोटो - विकिपीडिया )
     

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