Saturday 16 November 2019

ख्वाहिशों व प्रेम के अंतर्जाल में बुनी जनार्दन की कहानी : रॉकस्टार




" तू सबकी ज़िन्दगी उठा के देख ले, जितने भी हैं संगीतकार, गायक, आर्टिस्ट, पेंटर, राईटर। इन सबमें एक ऐसी चीज है, जो काॅमन मिलेगी तुझे......दु:ख, दर्द, आँसू। " इतना सुनकर जनार्दन निकल पड़ता है किसी ऐसे की तलाश में जो उसका दिल तोड़ दे। उसे हीर मिलती है, जो उसका दिल तोड़ती है और फिर वो बड़े नाटकीय अंदाज में अपने आप को बयाँ करता है। जैसे उसे कोई दुःख हो ही नहीं। फिर दोनों मिलते हैं, दोस्ती होती है और फिर लड़की शादी करके चली जाती है। लड़का घर के काम में लग जाता है और वो अपने संगीत से दूर हो जाता है। वही होता है जो सालों से होता आया है, एक ख्वाहिश को दबा दिया जाता है। पर लड़के का दिल तो अभी भी नहीं टूटता। दिल तो तब टूटता है, जब लड़के को चोरी के इंजाम में घर से बाहर निकाल दिया जाता है। यहाँ संगीत फिर साथ देने आता है, और जनार्दन बन जाता है जार्डन द राॅकस्टार। जार्डन वो नाम जिसे हीर ने ही उसे दिया था। हीर के लिए वो प्राग जाता है, वही सब होता है जब बिछड़े प्रेमी दोबारा मिलते हैं। लेकिन यहाँ राॅक्स्टार प्रेम के चक्कर में उग्र हो जाता है और वही करता है जो उसका दिल करता है और एक सेलेब्रिटी से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। जनार्दन को दर्द तो मिल गया और उसका सहारा लेकर उसने बहुत कुछ पा भी लिया। लेकिन उसके पास एक ऐसा दर्द भी है जिससे वो निकल नहीं पाता। उस दर्द के आगे सब कुछ छोटा है, कोई नेम नहीं, कोई फेम नहीं, कोई पैसा नहीं।

इम्तियाज अली की स्टोरीटेलिंग लाजवाब है, वो कहानी को परत दर परत बुनते हैं और हर एक परत एक दूसरे से जुड़ा हुआ होता है। उनके निर्देशन की शैली कमाल की है और स्थानों का चुनाव भी शानदार है। इनकी फिल्म में मस्ती, खुशी, दु:ख, दर्द और प्रेम सब कुछ सही सही मात्रा में मिल जायेगा। रणबीर कपूर ये वो नाम है, जिसने एक बड़े फिल्मी परिवार से आने के बावजूद अपना मुकाम अपने दम पर हासिल किया है। इन्होंने सबको दिखा दिया है कि अच्छा मुकाम हासिल करने के लिए टैलेंट की भी अहमियत होती है। ये भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के उन स्टार्स में से हैं, जो स्टार होने के साथ-साथ एक अच्छे एक्टर भी हैं। इस बात का सबूत इस फिल्म को देखने के बाद पता चल जायेगा। इस फिल्म में उन्होंने कई शेड्स में अपने कलाकारी का प्रभाव छोड़ा है।  पीयूष मिश्रा तो पीयूष मिश्रा है, वो किसी भी फिल्म में हों चाहे कितने भी देर के लिए हो, उनकी अदाकारी हमेशा ही प्रभावित करती है। फिल्म में शम्मी कपूर का कुछ सीन्स में होना फिल्म में चार चाँद लगा देता है।

यदि हम इस फिल्म में से संगीत को और गानों को निकाल दे, तो ये फिल्म वैसी ही हो जायेगी जैसे बिना दिल और फेफड़ों के कोई बेजान शरीर होता है। इसीलिए इस पूरी फिल्म में इनकी बहुत बड़ी भूमिका है। इरशाद कामिल और ए.आर. रहमान की जुगलबंदी ने कमाल कर दिया है।  इसमें कोई अकेला ऐसा गाना नहीं है, जो कहा जा सके कि ये यहाँ पर नहीं होता तो भी अच्छा होता। 'कुन फाया कुन' एक ऐसा गीत है जो खुद को नि:स्वार्थ बनाता है, इसको सुनते हुए एक आजादी की भावना प्रकट होती है...ऐसी आजादी जो हमारे नहीं होने में है।

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