Saturday, 27 August 2016

कारगिल के योद्धा

पिछले कुछ दिनों पहले मैं टीवी पर एक फिल्म LOC KARGIL देख रहा था। यह फिल्म 1999  की कारगिल की लड़ाई पर आधारित थी। फिल्म देखते वक्त ऐसा लगा कि कारगिल के इन वीर जवानों ने तो देश व देशवासियों की सुरक्षा के लिए अपनी जान तक न्यौछावर कर दी थी, लेकिन हम में से ऐसे कितने लोग हैं जो इनकी कुरबानी को याद रखते हैं। बहुत लोगों को तो ये भी नहीं पता होगा कि कारगिल का युद्ध हुआ कब था। कई लोगों को तो इन सब चीजों से  कोई मतलब ही नहीं होता है उन्हें तो बस अपने ही जीवन में उलझे रहना आता है। वे बीते जमाने के मशहूर अभिनेताओं, गायकों व नेताओं को तो जरूर याद रखते हैं, लेकिन इन जवानों के बारे में उन्हें पता तक नहीं होता है। अपने यहाँ राजनेताओं और कलाकारों का जन्मदिवस व निर्वाण दिवस जरूर मनाया जाता है, लेकिन इन वीर जवानों के बारे में कोई पूछता तक नहीं है। इतने सालों बाद ये जैसे भुला दिये गए हैं। हम ये कैसे भूल जाते हैं कि ये वही जवान हैं जिनकी वजह से आज हम सुरक्षित हैं। यदि ये नहीं होते तो शायद आज हम चैन की साँस नहीं ले रहे होते।
       हमें ये जान कर बहुत ही हैरानी होगी कि कारगिल के युद्ध में शहीद होने वाले कुछ जवानों जिनमें कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय, कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन अनुज नायर व कैप्टन विजयान्त थापर शामिल हैं इन सबकी उम्र तो सिर्फ 24-25 साल ही थी। इन सब के अलावा बहुत से और भी ऐसे जवान थे जिन्होंने इस युद्ध में अपना योगदान दिया। जैसे सिर्फ 19 साल की ही उम्र में कारगिल की लड़ाई लड़ने वाले योगेन्द्र सिंह यादव व 23 साल की उम्र में दुश्मनों से मोर्चा लेने वाले संजय कुमार। इतनी कम उम्र में जहाँ कई लोग अपने करियर को सँवारने में लगे रहते हैं, वहाँ इन सभी नवयुवकों ने छोटी सी ही उम्र में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये थे। कारगिल के युद्ध में शहीद होने वाले कैप्टन विजयान्त थापर ने शहीद होने से पहले अपनी माता जी को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने अपनी माताजी से अनाथालय में कुछ रूपये दान करने की बात कही था। ऐसे होते हैं सच्चे देशभक्त जिन्हें अपने जीवन के अंतिम क्षण में भी अपने देशवासियों की चिन्ता होती है। इस युद्ध में शहीद हुए जवानों को क्या अपने परिवारों की चिन्ता नहीं थी। क्या वे नहीं चाहते थे कि उन्हें भी आराम की जिन्दगी मिले। लेकिन इन सभी बातों को छोड़कर उन्होंने देश के बारे में सोचा व देश के मान व सम्मान के लिए जंग लड़ा। इसके लिए उन्होंने अपनी निजी जीवन की तनिक भी चिन्ता नहीं की और एक हम हैं जो उनकी कुर्बानियों को भुला रहे हैं।
    कारगिल के उन वीर जवानों की तरह ऐसे और भी कई जवान थे जिन्होंने इससे पहले के युद्धों में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया और आज भी ऐसे कई जवान देश की सुरक्षा में लगे हुए हैं। मैं ये नहीं कहता कि उनके जन्मदिवस को याद ही रखा जाए, लेकिन हम उनकी उस वीरता को तो याद रख सकते हैं। जिसकी वजह से हमारा देश दुश्मनों के प्रहार से बच पाया था।

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