Sunday, 17 December 2017

कठिन परिस्थितियों में पनपे विचारों को बतलाती ऐन की डायरी


'द डायरी आॅफ ए यंग गर्ल', दुनिया की सबसे चर्चित डायरी और द्वितीय विश्व युद्ध के महत्वपूर्ण दस्तावेजों में से एक। एक 14-15 साल की यहूदी लड़की ऐन फ्रैंक द्वारा लिखी गयी इस डायरी में, सिर्फ रोजाना की घटनाओं का वर्णन भर ही नहीं है। बल्कि इसमें उन सभी लोगों का दर्द छिपा हुआ है; जिन्होंने उस दौरान एक ऐसे समय को झेला था, जहाँ पर उन सभी की इंसानी मान्यता न के बराबर थी। इस डायरी में एक लड़की की आंतरिक भावनायें छुपी हैं, वो अहसास छिपा है जिसे उसकी चाहत थी। 

1942 का साल, द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू हुए तीन साल हो चुके थे और एडोल्फ हिटलर पूरे यूरोप में यहूदियों के खिलाफ अभियान शुरू कर चुका था। इसी साल 12 जून को ऐन को उनके जन्मदिन पर अपने पिता से एक लाल रंग की डायरी उपहार में मिलती है और वो डायरी लिखना शुरू कर देती हैं। ये डायरी उनके सबसे अच्छे तोहफों में से एक थी। क्योंकि अभी तक उनके पास कोई ऐसा नहीं था, जिससे वो अपनी हर बात कह सके। लेकिन अब उनके पास उनकी 'किटी' थी, जैसा कि वो डायरी को संबोधित करती हैं। इस डायरी में उन्होंने यहूदियों पर लगाई गयी पाबंदियों के बारे में लिखा है, " यहूदियों को पीला सितारा लगाना होता था, उन्हें कार से चलने की मनाही थी चाहे वो उनकी अपनी ही क्यों न हो, यहूदी थिएटर नहीं जा सकते थे "। इससे पता चलता है कि उस समय यहूदी आजाद होते हुए भी आजाद नहीं थे। फिर भी उस समय वो अपने घर पर तो रह सकते थे। लेकिन ऐसा समय ज्यादा दिन तक नहीं रहा। कुछ महीनों बाद जर्मन सेना नीदरलैंड पहुँची और उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा। जर्मन सेना से बचने के लिए वो अपने परिवार के साथ ऐम्सटर्डम की उस इमारत के ऊपरी हिस्से में किताबों की आलमारी के पीछे छिपने चली गयीं, जहाँ उनके पिता काम करते थे। यहाँ पर ऐन के परिवार के अलावा उनके साथ एक और परिवार उस छोटी सी जगह में छिपा रहा। इस जगह पर छिपने के लिए ऐन के पिता आॅटो फ्रैंक के कुछ ईसाई दोस्तों ने उनकी मदद की।

इस छोटी सी बंद जगह पर ये आठ लोग सालों तक रहे। यहाँ से वो न तो कहीं बाहर जा सकते थे और न ही कुछ चुने हुए लोगों के अलावा किसी से बात कर सकते थे। ऐन अपनी डायरी में उस जगह को अनेक्स कह कर बुलाती हैं। अनेक्स में रहते हुए ये सभी कई बार ऐसे समय से गुजरे, जब उन्हें बिना बोले, बिना हिले-डुले पूरा दिन गुजारना पड़ता था। इस डायरी में अनेक्स में मनाये जाने वाले उत्सवों व अक्सर होने वाले आपसी झगड़ों के बारे में भी पता चलता है। जो यहाँ होना लाजमी था। इसके अलावा उन्होंने हमेशा होने वाले गोला, बारूदों व गोलियों के आवाजों की चर्चा भी की है। जिसकी तेज आवाजों से उस जगह पर सोना भी दुसवार था। 

इस डायरी को पढ़ने पर ये कभी नहीं लगता कि ये डायरी एक चौदह साल की लड़की के द्वारा लिखी गयी है। यहाँ पर उन्होंने अपने कुछ ऐसे विचारों को साझा किया है, जो एक बहुत अनुभवी विचारक ही सोच सकता है। जिसने पूरी दुनिया देखी हो व अलग-अलग परिस्थितियों का सामना किया हो। मेरा ऐसा मानना है कि एक बंद जगह पर रहते हुए और वहाँ पर खुद को अलग पाकर, ऐन के विचारों में परिपक्वता जल्दी आयी हो। इस डायरी के माध्यम से उन्होंने अपने आप को पूरा खोल कर रख दिया। जो शायद आसान बात नहीं थी और ऐसे शख्स के लिए तो बिल्कुल भी नहीं, जो हर वक्त एक डर के साथ जी रहा हो। 'कागज में लोगों से ज्यादा धीरज होता है' , ये कहकर ऐन अपनी डायरी के बहुत ही करीब दिखायी पड़ती हैं।

अनेक्स में ये आठों लोग करीब दो सालों तक छिपे रहे। अगस्त 1944 में किसी ने उन लोगों के छुपे होने की खबर दे दी और उन सभी लोगों को बंदी शिविर में डाल दिया गया। साथ ही उनकी मदद करने वाले ईसाई दोस्तों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। फरवरी के आखिर में बंदी शिविर में फैले टाइफस के कारण ऐन फ्रैंक की मृत्यु हो गयी। उन आठ लोगों में से एक अकेले आॅटो फ्रैंक ही थे, जो उस बंदी शिविर से जिंदा बचकर निकले थे। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी के विचारों को पूरी दुनिया तक पहुँचाया।

ऐन फ्रैंक बहुत छोटी सी ही उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह गयी, लेकिन उनके विचार, अलग अलग लोगों के प्रति उनका नजरिया, दुनिया के प्रति उनकी समझ व उनकी कलात्मक दृष्टि अभी भी ज़िन्दा है। उनकी डायरी के माध्यम से युद्ध के दौरान का वो खौफनाक मंजर अभी भी हमारे सामने बिल्कुल वैसा ही दिखायी पड़ता है।

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