Tuesday 13 September 2016

वोट की राजनीति

अब यूपी के विधानसभा चुनाव नजदीक आने वाले हैं। लगभग सारी राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव के लिए अपनी कमर कस ली है और जंग में उतरने को तैयार हैं। साथ ही इन्होंने जनता को लुभाने की भी तैयारी अच्छे से कर ली है। अब कुछ ही महीनों में सभी पार्टियाँ अपने-अपने वादों को बतलाती हुयी नजर आयेंगी। चुनाव प्रचार के दौरान तरह तरह के वादे किये जायेंगे और उन्हें निभाने का भी पूर्ण विश्वास दिलाया जायेगा, क्योंकि जनता के सेवकों को तो पता ही है कि यदि एक बार वे चुनाव जीत गए, तो उसके बाद जनता चाहे कुछ भी माँग करे, उन्हें चलना तो अपनी मर्जी से ही है। हाँ कुछ वादे जरूर पूरे किये जायेंगे ताकि भोली जनता को यह अहसास दिलाया जा सके कि उन्होंने उनके साथ धोखा तो नहीं ही किया है। चुनाव के दौरान ये जगह जगह रैलियाँ करेंगे, गरीबों के साथ बैठकर खाना खायेंगे। उन्हें यह जताने की कोशिश करेंगे कि वे उनके साथ हैं। लेकिन ये सब दिखावा होता है,  सब वोट हासिल करने की जिद्दोजहद होती है। न ही तो इन्हें गरीबों से कोई लगाव है और ना ये कुछ करना चाहते हैं। ये बस जीतने के लिए जनता का इस्तेमाल करते हैं। यदि इन्हें वास्तव में गरीबों की इतनी ही फिक्र है तो इन्हें उनके साथ बैठकर खाना खाने की जगह उनकी परेशानियों को तुरन्त हल करने के बारे में सोचना चाहिए।
           आखिर क्यों ये राजनीतिक पार्टियाँ लोगों को लालच देकर वोट हासिल करना चाहती हैं। यदि इन्हें इस देश और यहाँ के लोगों की सही में चिन्ता है, तो चुनाव के पहले वे क्यों नहीं लोगों की मदद करते हैं, क्यों चुनाव आने पर ही ये जनता का विश्वास जीतना चाहते हैं। इन पार्टियों की हालत तो ये है कि यदि सरकार में रहने वाली पार्टी ने कोई काम किया या फिर कोई योजना लायी, तो विपक्षी पार्टियाँ जरूर उस काम की आलोचना करेंगी तथा उसको जनता के लिए हानिकारक बतायेंगी। भले ही यही काम उन्होंने अपनी सरकार के दौरान किया हो। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि जिस पार्टी की सरकार है, उसने कोई अच्छी योजना लायी हो और विपक्षी  पार्टियों ने उनके काम की सराहना की हो, क्योंकि बुराई करना इनकी आदत बन चुकी है। वे योजनाओं के बारे में सोचते तक नहीं हैं, बस बिना कुछ सोचे समझे आलोचना करते हैं। अधिकतर पार्टियों और इनके नेताओं का यही हाल है। अब पता नहीं ऐसा कर के वे क्या साबित करना चाहते हैं। इन्हें देश के विकास, लोगों की जरूरतों से बहुत कम ही मतलब रहता है। ये तो बस एक दूसरे से लड़ना जानते हैं, जब तक की इन्हें एक दूसरे से कोई फायदा न हो। जब इन्हें एक दूसरे की जरूरत होती है तभी ये साथ आते हैं और तभी गठबंधन होता है।
          गलती सिर्फ राजनेताओं, राजनीतिक पार्टियों की ही नहीं है, गलती हम जैसे लोगों की भी है, गलती उस हर एक ऐसी जनता की है, जो जागरूक नहीं है। हम लोग भी इनकी लुभावनी बातों में आ जाते हैं तथा लालच के चक्कर में इन्हें वोट देते हैं। पिछले चुनावों में मैंने खुद ऐसी ही एक स्थिति बनते देखा था कि जनता किसी पार्टी को सिर्फ इसलिए वोट दे रही है कि वो उन्हें कुछ वस्तुयें दे रहा है। जो कि शायद ही उसके लिए बहुत ज्यादा जरूरी है। पहले तो हम लालच के चलते उनका साथ दे देते हैं, बाद में वही दूसरे तरीके से हमारा शोषण करते हैं। यदि हमें इस सब को रोकना है तो पहले हमें खुद में बदलाव लाना होगा और इनमें उनका साथ देने से खुद को रोकना होगा।

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