अब यूपी के विधानसभा चुनाव नजदीक आने वाले हैं। लगभग सारी राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव के लिए अपनी कमर कस ली है और जंग में उतरने को तैयार हैं। साथ ही इन्होंने जनता को लुभाने की भी तैयारी अच्छे से कर ली है। अब कुछ ही महीनों में सभी पार्टियाँ अपने-अपने वादों को बतलाती हुयी नजर आयेंगी। चुनाव प्रचार के दौरान तरह तरह के वादे किये जायेंगे और उन्हें निभाने का भी पूर्ण विश्वास दिलाया जायेगा, क्योंकि जनता के सेवकों को तो पता ही है कि यदि एक बार वे चुनाव जीत गए, तो उसके बाद जनता चाहे कुछ भी माँग करे, उन्हें चलना तो अपनी मर्जी से ही है। हाँ कुछ वादे जरूर पूरे किये जायेंगे ताकि भोली जनता को यह अहसास दिलाया जा सके कि उन्होंने उनके साथ धोखा तो नहीं ही किया है। चुनाव के दौरान ये जगह जगह रैलियाँ करेंगे, गरीबों के साथ बैठकर खाना खायेंगे। उन्हें यह जताने की कोशिश करेंगे कि वे उनके साथ हैं। लेकिन ये सब दिखावा होता है, सब वोट हासिल करने की जिद्दोजहद होती है। न ही तो इन्हें गरीबों से कोई लगाव है और ना ये कुछ करना चाहते हैं। ये बस जीतने के लिए जनता का इस्तेमाल करते हैं। यदि इन्हें वास्तव में गरीबों की इतनी ही फिक्र है तो इन्हें उनके साथ बैठकर खाना खाने की जगह उनकी परेशानियों को तुरन्त हल करने के बारे में सोचना चाहिए।
आखिर क्यों ये राजनीतिक पार्टियाँ लोगों को लालच देकर वोट हासिल करना चाहती हैं। यदि इन्हें इस देश और यहाँ के लोगों की सही में चिन्ता है, तो चुनाव के पहले वे क्यों नहीं लोगों की मदद करते हैं, क्यों चुनाव आने पर ही ये जनता का विश्वास जीतना चाहते हैं। इन पार्टियों की हालत तो ये है कि यदि सरकार में रहने वाली पार्टी ने कोई काम किया या फिर कोई योजना लायी, तो विपक्षी पार्टियाँ जरूर उस काम की आलोचना करेंगी तथा उसको जनता के लिए हानिकारक बतायेंगी। भले ही यही काम उन्होंने अपनी सरकार के दौरान किया हो। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि जिस पार्टी की सरकार है, उसने कोई अच्छी योजना लायी हो और विपक्षी पार्टियों ने उनके काम की सराहना की हो, क्योंकि बुराई करना इनकी आदत बन चुकी है। वे योजनाओं के बारे में सोचते तक नहीं हैं, बस बिना कुछ सोचे समझे आलोचना करते हैं। अधिकतर पार्टियों और इनके नेताओं का यही हाल है। अब पता नहीं ऐसा कर के वे क्या साबित करना चाहते हैं। इन्हें देश के विकास, लोगों की जरूरतों से बहुत कम ही मतलब रहता है। ये तो बस एक दूसरे से लड़ना जानते हैं, जब तक की इन्हें एक दूसरे से कोई फायदा न हो। जब इन्हें एक दूसरे की जरूरत होती है तभी ये साथ आते हैं और तभी गठबंधन होता है।
गलती सिर्फ राजनेताओं, राजनीतिक पार्टियों की ही नहीं है, गलती हम जैसे लोगों की भी है, गलती उस हर एक ऐसी जनता की है, जो जागरूक नहीं है। हम लोग भी इनकी लुभावनी बातों में आ जाते हैं तथा लालच के चक्कर में इन्हें वोट देते हैं। पिछले चुनावों में मैंने खुद ऐसी ही एक स्थिति बनते देखा था कि जनता किसी पार्टी को सिर्फ इसलिए वोट दे रही है कि वो उन्हें कुछ वस्तुयें दे रहा है। जो कि शायद ही उसके लिए बहुत ज्यादा जरूरी है। पहले तो हम लालच के चलते उनका साथ दे देते हैं, बाद में वही दूसरे तरीके से हमारा शोषण करते हैं। यदि हमें इस सब को रोकना है तो पहले हमें खुद में बदलाव लाना होगा और इनमें उनका साथ देने से खुद को रोकना होगा।
Tuesday, 13 September 2016
वोट की राजनीति
Thursday, 1 September 2016
धर्म v/s विज्ञान
धर्म और विज्ञान, क्या ये दोनों अलग-अलग विषय हैं? क्या जहाँ धर्म है, वहाँ विज्ञान की कोई भी बात मायने नहीं रखती है और जहाँ विज्ञान है, वहाँ धर्म का कोई स्थान नहीं। बहुत से लोगों का यह मानना है कि जहाँ पर विज्ञान जाकर खत्म होता है, वहीं से धर्म की शुरूआत होती है। उनका ये भी मानना है कि जो बातें विज्ञान के द्वारा पता नहीं की जा सकती, वो धर्म के द्वारा पता की जा सकती हैं। लेकिन सत्य तो बिल्कुल ही इसके विपरीत है। धर्म और विज्ञान परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। धर्म का ये मतलब तो कतई नहीं की हम किसी विशिष्ट देवता को ही माने या फिर उनकी पूजा करें, हाँ ये हमारे रचयिता के प्रति आस्था को जरूर प्रकट करता है। धर्म तो इस संसार व यहाँ के लोगों को जानने व समझने का एक जरिया मात्र है और विज्ञान के द्वारा भी हम लगभग यही पता करते हैं। फिर पता नहीं ये दोनों अलग कैसे हो गए।
आज का जो समय है, वहाँ के लोगों ने ही इसे अलग-अलग कर दिया है और तो और उन्होंने धर्म का भी बँटवारा कर दिया कि ये धर्म मेरा है और ये धर्म तुम्हारा है। इनकी पूजा हम करेंगे और इनकी तुम। इस समय लोग धर्म का प्रयोग ज्ञान के लिए नहीं कर रहे, बल्कि वो तो इसे लड़ाईयों व भेदभाव का आधार बना रहे हैं। धर्म जो कि मनुष्य व समाज के विकास में सहायक होना चाहिए, आज उसी धर्म के नाम पर हजारों कत्ल किये जा रहे हैं। यही वे लोग हैं जिन्होंने इस शब्द का मतलब ही बदल दिया और इसे बिल्कुल अलग रख दिया। जिस तरह से इन लोगों ने विज्ञान और धर्म को अलग-अलग किया और बाद में धर्म को भी बाँट दिया, हो सकता है कि आने वाले समय में ये लोग विज्ञान को भी खंडित कर दें। कहीं ऐसा न हो जाए कि पृथ्वी के किसी एक भाग के लोग कहें कि भौतिक विज्ञान (Physics) पर हमारा अधिकार है और दूसरे भाग के लोग कहें कि जीव विज्ञान (Biology) पर हमारा अधिकार है। वहीं तीसरे भाग के लोग कहीं रसायन विज्ञान ( Chemistry) पर अपना आधिपत्य न जमाने लगें। अब बताइये जरा यदि विज्ञान की ये तीनों शाखायें अलग-अलग हो जायें तो क्या आगे कोई खोज संभव हो पायेगी, क्या नये आविष्कार हो पायेंगें। नहीं हो पायेगें, क्योंकि हम जानते हैं कि ये तीनों विषय परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ठीक उसी प्रकार धर्म और विज्ञान भी एक दूसरे से संबंधित हैं।
विज्ञान के बारे में प्रारम्भिक ज्ञान हमें धर्म से प्राप्त हुआ है और धर्म का पुरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमने विज्ञान का सहारा लिया है। जैसे हमें यदि कहीं पर खुदाई में कोई वस्तु प्राप्त होती है तो हम तकनीक का प्रयोग करके उस वस्तु के समय काल का पता लगाते हैं और फिर वहाँ की सभ्यता व संस्कृतियों का अनुमान लगाते हैं। वैसे ही धर्म विज्ञान को अपनी पुरानी पद्धतियों से परिचय कराता है ताकि वो किसी नए खोज या आविष्कार का आधार बन सकें। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि धर्म और विज्ञान दोनों का ही लोग, समाज व वहाँ की संस्कृतियों के विकास में बराबर का योगदान है और आगे भी हम इन दोनों की सहायता से ही विकास करेंगे और अनसुलझे रहस्यों को सुलझायेंगे।