सोचिए कैसा हो, यदि हम एक ऐसी जगह पर रहें, जहाँ पर पैसे का कोई स्थान नहीं हो, ना ही कोई धर्म हो और ना ही कोई जाति। पूरी दुनिया के लगभग प्रत्येक देश की कोई ना कोई मुद्रा है और वहाँ कम से कम एक धर्म तो है ही। लेकिन आप लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में एक ऐसा ही प्रयोगिक शहर बसाया गया है, जहाँ पर ना तो कोई धर्म है, न तो वहाँ की कोई सरकार है और ना ही वहाँ कोई मुद्रा चलती है। यहाँ राजनीति का कोई स्थान नहीं है। पुडुचेरी के पास तमिलनाडु राज्य के विलुप्पुरम जिले में बसा यह प्रायोगिक शहर ओरोविल के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना सन् 1968 में मीरा रिचर्ड ने की थी। भारत सरकार ने भी मीरा रिचर्ड के इस अद्वितीय कार्य का समर्थन किया। इस शहर को भोर का शहर ( City of Dawn ) भी कहा जाता है। यहाँ पर कोई भी आकर रह सकता है, भले ही वह किसी भी देश का हो या किसी भी धर्म का। यहाँ पर रहने वाले लोग बँटे हुए नहीं हैं, उनकी तो बस एक ही पहचान है कि वे मनुष्य हैं। इस शहर को भी यही भावना लेकर बनाया गया था कि लोग अपनी इस एकता को महसूस कर सकें।
वैसे तो इस शहर में 50,000 लोगों को जगह देने की योजना थी। लेकिन इस समय यहाँ 44 देशों के कुल 2,047 लोग निवास करते हैं, जिसमें से 836 भारतीय मूल के लोग हैं। जैसा कि मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ कि यहाँ की कोई मुद्रा नहीं है, इसलिए यहाँ पर रहने वाले लोग एक केन्द्रीय खाते का इस्तेमाल करते हैं। शहर में एक मंदिर भी स्थापित है, जिसे मातृमंदिर कहा जाता है। हालांकि यह मंदिर किसी भी धर्म से नहीं जुड़ा हुआ है, लेकिन यहाँ पर लोग ध्यान लगाने के लिए आते हैं व शांति की अनुभूति करते हैं। इस मंदिर के आसपास का क्षेत्र प्रशांत क्षेत्र कहलाता है। मंदिर में एक स्वर्ण क्रिस्टल बाॅल भी है, जो 'भविष्य के अनुभूति के प्रतीक' का प्रतिनिधित्व करता है। इस शहर के चार क्षेत्र हैं : "आवासीय क्षेत्र", " औद्योगिक क्षेत्र", "सांस्कृतिक(व शैक्षणिक) क्षेत्र" तथा " अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र" । नगरी क्षेत्र के पास संसाधन क्षेत्र हैं, जहाँ पर खेत, वन, उद्यान व बांध स्थापित हैं। श्री औरोबिन्दो इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ एजुकेशनल रिसर्च (SAIIER) की मदद से ओरोविल कई शैक्षणिक संस्थान भी चलाता है। ओरोविल के निवासियों से समुदाय में योगदान की अपेक्षा की जाती है। उन्हें हर एक प्रकार से समुदाय की सेवा करने को कहा जाता है। इसीलिए वहाँ रहने वाला कोई भी व्यक्ति मालिक नहीं होता है, बल्कि वो तो एक सेवक की तरह होता है। यहाँ पर आने वाले नए लोगों के लिए सबसे बड़ी परेशानी गृह-निर्माण की है, क्योंकि वर्तमान में ओरोविल सभी लोगों को आवास उपलब्ध करा पाने की स्थिति में नहीं है। नए लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपना घर बनाने में आर्थिक सहयोग दें। ओरोविल टुडे के अनुसार " नए लोगों के लिए काम के अवसर की कमी और रखरखाव का निम्नस्तर ये दो बाधाएं हैं। क्योंकि नए लोग व्यवसायिक इकाइयों या सेवा में कोई उचित काम नहीं ढूंढ पाते हैं। "
सन् 2004 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने ओरोविल का दौरा किया तथा इसकी प्रशंसा की व अपनी सराहना व्यक्त की। UNESCO ने भी अभी तक इसका चार बार समर्थन किया है। इसकी स्थापना के समय मीरा रिचर्ड ने कहा था कि "ओरोविल भूत व भविष्य के बीच पुल बनने का आकांक्षी है। " निःसंदेह उनकी इस बात में सच्चाई है, क्योंकि जब दुनिया की शुरूआत हुयी तो मनुष्य किसी भी देश या धर्म से संबंधित नहीं थे। वो तो सिर्फ और सिर्फ मनुष्य ही थे। यही उनकी पहचान थी और आने वाले समय में शायद ऐसा ही कुछ हो। यदि कोई व्यक्ति अपनी आंतरिक परेशानियों से मुक्त होना चाहता है, एक शांति की अनुभूति व अपने अस्तित्व के होने का अहसास करना चाहता है, तो उसे यहाँ जरूर आना चाहिए।
(साभार- ओरोविल वेब पेज, विकिपीडिया )