Saturday, 15 October 2016

भोर का शहर

सोचिए कैसा हो, यदि हम एक ऐसी जगह पर रहें, जहाँ पर पैसे का कोई स्थान नहीं हो, ना ही कोई धर्म हो और ना ही कोई जाति। पूरी दुनिया के लगभग प्रत्येक देश की कोई ना कोई मुद्रा है और वहाँ कम से कम एक धर्म तो है ही। लेकिन आप लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में एक ऐसा ही प्रयोगिक शहर बसाया गया है, जहाँ पर ना तो कोई धर्म है, न तो वहाँ की कोई सरकार है और ना ही वहाँ कोई मुद्रा चलती है। यहाँ राजनीति का कोई स्थान नहीं है। पुडुचेरी के पास तमिलनाडु राज्य के विलुप्पुरम जिले में बसा यह प्रायोगिक शहर ओरोविल  के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना सन् 1968 में मीरा रिचर्ड ने की थी। भारत सरकार ने भी मीरा रिचर्ड के इस अद्वितीय कार्य का समर्थन किया। इस शहर को भोर का शहर ( City of Dawn ) भी कहा जाता है। यहाँ पर कोई भी आकर रह सकता है, भले ही वह किसी भी देश का हो या किसी भी धर्म का। यहाँ पर रहने वाले लोग बँटे हुए नहीं हैं, उनकी तो बस एक ही पहचान है कि वे मनुष्य हैं। इस शहर को भी यही भावना लेकर बनाया गया था कि लोग अपनी इस एकता को महसूस कर सकें। 
       वैसे तो इस शहर में 50,000 लोगों को जगह देने की योजना थी। लेकिन इस समय यहाँ  44 देशों के कुल 2,047 लोग निवास करते हैं, जिसमें से 836 भारतीय मूल के लोग हैं। जैसा कि मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ कि यहाँ की कोई मुद्रा नहीं है, इसलिए यहाँ पर रहने वाले लोग एक केन्द्रीय खाते का इस्तेमाल करते हैं। शहर में एक मंदिर भी स्थापित है, जिसे मातृमंदिर कहा जाता है। हालांकि यह मंदिर किसी भी धर्म से नहीं जुड़ा हुआ है, लेकिन यहाँ पर लोग ध्यान लगाने के लिए आते हैं व शांति की अनुभूति करते हैं। इस मंदिर के आसपास का क्षेत्र प्रशांत क्षेत्र कहलाता है। मंदिर में एक स्वर्ण क्रिस्टल बाॅल भी है, जो  'भविष्य के अनुभूति के प्रतीक' का प्रतिनिधित्व करता है। इस शहर के चार क्षेत्र हैं : "आवासीय क्षेत्र", " औद्योगिक क्षेत्र", "सांस्कृतिक(व शैक्षणिक) क्षेत्र" तथा " अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र" । नगरी क्षेत्र के पास संसाधन क्षेत्र हैं, जहाँ पर खेत, वन, उद्यान व बांध स्थापित हैं। श्री औरोबिन्दो इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ एजुकेशनल रिसर्च (SAIIER) की मदद से ओरोविल कई शैक्षणिक संस्थान भी चलाता है। ओरोविल के निवासियों से समुदाय में योगदान की अपेक्षा की जाती है। उन्हें हर एक प्रकार से समुदाय की सेवा करने को कहा जाता है। इसीलिए वहाँ रहने वाला कोई भी व्यक्ति मालिक नहीं होता है, बल्कि वो तो एक सेवक की तरह होता है। यहाँ पर आने वाले नए लोगों के लिए सबसे बड़ी परेशानी गृह-निर्माण की है, क्योंकि वर्तमान में ओरोविल सभी लोगों को आवास उपलब्ध करा पाने की स्थिति में नहीं है। नए लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपना घर बनाने में आर्थिक सहयोग दें। ओरोविल टुडे के अनुसार " नए लोगों के लिए काम के अवसर की कमी और रखरखाव का निम्नस्तर ये दो बाधाएं हैं। क्योंकि नए लोग व्यवसायिक इकाइयों या सेवा में कोई उचित काम नहीं ढूंढ पाते हैं। "

 सन् 2004 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने ओरोविल का दौरा किया तथा इसकी प्रशंसा की व अपनी सराहना व्यक्त की। UNESCO ने भी अभी तक इसका चार बार समर्थन किया है। इसकी स्थापना के समय मीरा रिचर्ड ने कहा था कि "ओरोविल भूत व भविष्य के बीच पुल बनने का आकांक्षी है। " निःसंदेह उनकी इस बात में सच्चाई है, क्योंकि जब दुनिया की शुरूआत हुयी तो मनुष्य किसी भी देश या धर्म से संबंधित नहीं थे। वो तो सिर्फ और सिर्फ मनुष्य ही थे। यही उनकी पहचान थी और आने वाले समय में शायद ऐसा ही कुछ हो। यदि कोई व्यक्ति अपनी आंतरिक परेशानियों से मुक्त होना चाहता है, एक शांति की अनुभूति व अपने अस्तित्व के होने का अहसास करना चाहता है, तो उसे यहाँ जरूर आना चाहिए।

                                                                                       (साभार- ओरोविल वेब पेज, विकिपीडिया )

Friday, 14 October 2016

कश्मीर- एक अनसुलझी कहानी

भारत और पाकिस्तान के बीच अभी तक चार युद्ध हो चुके हैं और इसमें से लगभग तीन बार इन युद्धों का कारण कश्मीर रहा है। सारे युद्ध में पाकिस्तान को हार का ही सामना करना पड़ा। लेकिन कश्मीर के कुछ क्षेत्रों में पाकिस्तान का अवैध कब्जा है, जिसे हम पाक अधिकृत कश्मीर(POK) के नाम से जानते हैं और अभी भी पाकिस्तान कश्मीर को लेकर कोई ना कोई मुद्दा उठाता ही रहता है। इस विवाद की शुरूआत सन् 1947 में शुरू हुयी, जब भारतीय रियासतों के विलय हो रहे थे। जम्मू व कश्मीर जैसे कुछ रियासत विलय में देरी लगा रहे थे। इस बात का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने अपनी सेना को कबाइली लुटेरों के भेष में कश्मीर भेज दिया। चूँकि कश्मीर की सीमा पाकिस्तान से लगती थी, इसलिए वे वहाँ पर कब्जा जमाना चाहते थे। पाकिस्तानी सेना ने वहाँ बहुत से लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस बात से घबराकर वहाँ के शासक महाराजा हरिसिंह ने भारत से मदद माँगी व अपनी रियासत के भारत में विलय की घोषणा कर दी। लेकिन उन्होंने यह निर्णय बहुत ही देरी से लिया, जिसके चलते पाकिस्तान ने लगभग आधे कश्मीर पर कब्जा कर लिया। इसके बाद भी भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को सबक सिखाते हुये, कई क्षेत्रों को पुनः प्राप्त कर लिया था, लेकिन तभी माननीय नेहरू जी के UNO में अपील करने के कारण युद्ध विराम की घोषणा हो गयी। जिसके कारण भारतीय सेना कश्मीर को दोबारा प्राप्त करने में असफल रही और आज तक वो क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में है, जिसका खामियाजा आये दिन हमारे देश को भुगतना पड़ रहा है। ऐसे ही 1971 के युद्ध में इंदिरा गांधी के पास भी एक मौका था, जब पाकिस्तान की सेना के 1 लाख सैनिकों ने भारत की सेना के सामने समर्पण किया था। यदि वे चाहती तो कश्मीर की समस्या को हल कर सकती थी लेकिन ये मौका भी इंदिरा गांधी ने गँवा दिया और 1 लाख सैनिकों को छोड़ दिया।
     नेहरू जी व इंदिरा गांधी के इस गलत निर्णय के कारण आज कश्मीर का वो इलाका आतंकवादियों का गढ़ बन चुका है। यहीं से ये आतंकवादी तमाम गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं और घाटी में हिंसा फैला रहे हैं। कहने को तो POK की एक अलग सरकार है और वहाँ पर एक प्रधानमंत्री भी है, लेकिन सारा नियंत्रण पाकिस्तान के हाथ में है। वहाँ के लोग बहुत ही दुःख भरी जिन्दगी जी रहे हैं। आलम तो यह है कि POK के कई मुस्लिम परिवारों ने भारत में शरण ले रखी है। लंदन के रिसर्चरों के द्वारा वहाँ के कुछ जिलों में कराये गये सर्वे के अनुसार एक व्यक्ति ने भी पाकिस्तान के साथ खड़े होने की वकालत नहीं की। वकालत वही लोग कर रहे हैं, जो कट्टरपंथी व अलगाववादी है। यही वे लोग हैं, जो आये दिन दंगा फसाद करते रहते हैं। ये लोग वहाँ पर अमन व शांति नहीं चाहते हैं। अब तो धीरे-धीरे POK के कुछ हिस्से पर चीन भी कब्जा जमा रहा है, लेकिन इस बात से तो कट्टरपंथियों को कोई मतलब ही नहीं है, उन्हें तो बस भारत से ही परेशानी है। भारत भी अब चुप नहीं बैठने वाला, सर्जिकल स्ट्राईक के जरिए भारतीय सेना ने POK में कई आतंकियों को मार गिराया और उनके ठिकानों को तबाह कर दिया। हमें भारतीय सेना व सरकार के इस निर्णय पर गर्व है। जरूरत है तो ऐसे ही कुछ और मिशन की जिससे कि कश्मीर आतंकियों के गढ़ से मुक्त हो सके और वापस हम इसे प्राप्त कर सकें और वहाँ के लोग हिंसा से मुक्त हो सकें। इसके लिए हो सकता है कि बेशक हमें एक युद्ध लड़ना पड़े, लेकिन इसके बाद आगे हमें इन मुद्दों पर बहस नहीं करना पड़ेगा। पिछली सरकारों ने जो गलतियां की, उन्हें अब दोहराना नहीं चाहिए, व राजनीति से दूर हटकर इसपर एक सख्त फैसला लेना चाहिए।