Friday 14 July 2017

इनरलाइन पास : जिन्दगी से रूबरू कराती एक यात्रा

कैसा लगे जब हम एक जगह पर बैठकर, एक ही काम करते हुए अपनी पूरी ज़िन्दगी बिता दें। यह कुछ लोगों के लिए बहुत बुरी बात होगी, लेकिन आजकल बहुत से लोग ऐसी ही ज़िन्दगी चुन रहे हैं। सुबह उठना, आॅफिस जाना, आॅफिस से घर आना, खान, पीना व सो जाना। फिर सुबह उठना और वही सुबकुछ। यही लाईफ आज हर किसी की है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इन बनी बनायी धाराओं पर नहीं चलते। वे अपने मुकाम खुद चुनते हैं, व रास्ते भी खुद ही बनाते हैं। उमेश पंत भी उन्हीं में से एक हैं। आज मैंने उनकी लिखी किताब "इनरलाइन पास" पढ़कर खत्म कर ली। इसे पढ़कर ज़िन्दगी का सही मतलब समझ में आया व ज़िन्दगी व मौत को करीब से जानने का मौका भी मिला। सच में मैं इसे पढ़ते वक्त उस दुनिया में चला गया था, जहाँ पर मैं हमेशा से जाना चाहता था। यह किताब सिर्फ एक यात्रावृतांत भर नहीं है। इसमें तो इतिहास भी है, लोगों की मेहनत है और सबसे ज्यादा इंसानियत और आदर व सत्कार की भावना है, जो आज हमें कभी मेट्रो सिटीज में देखने को नहीं मिलती।

         किताब के शुरूआती पन्नों में उमेश पंत ने एक अनंत यात्रा की बात की है, जो कि बिना कहीं घुमे-फिरे, बिना कुछ नया देखे, पुराने ढर्रे पर खत्म हो जाती है। इसमें लेखक ने एक और बात कही है कि हम जिन उत्पादों की निर्माण प्रकिया का हिस्सा होते हैं, वो उत्पाद घुमा फिरा कर हमें ही बेच दिया जाता है। बहुत से लोग ये सच जानते हुए भी इससे बचकर निकल नहीं पाते है व अपने आप को मजबूर समझकर बँधे रहते हैं। इस किताब में लेखक इसी बंधन को तोड़कर अपनी दुनिया में निकल जाता है। दिल्ली से लेकर कैलाश मानसरोवर तक की इस यात्रा को पढ़ते वक्त हर समय मन रोमांचित हो उठता है व आँखों के सामने विहंगम दृश्य अपने आप बनते चले जाते हैं। मानों कि लेखक की नजर से ये यात्रा आप खुद कर रहे हों। इस किताब में किसी इंसान का दर्द, तो किसी की खुशी, किसी का डर, तो किसी की मजबूरी सबकुछ मिलेगा। एक जगह लेखक ने लिखा भी है, "ज़िन्दगी एक ही परिस्थिति को हमलोगों में किस तरह से बाँट देती है ! जो हमारा शौक था, वो उनकी मजबूरी थी।"

       लेखक ने इसमें एक खास अनुभव को भी शामिल किया है कि कैसे उन्होंने और उनके दोस्त ने एक पूरी रात ऐसे जंगल में गुजारी, जहाँ लगातार बारिश हो रही थी व ठंड ऐसी की शरीर को गला कर रख दे। ऊपर से चौबीस घंटों से बिना कुछ खाये पीये। ऐसे विषम परिस्थितियों में दोनों ने अपना हौसला बनाये रखा व मौत को शिकस्त दी। वास्तव में उनकी ये रात डराने के साथ-साथ उन्हें कुछ सिखाकर भी गयी।
       एक जगह लेखक ने बहुत अच्छा लिखा है कि पैसा हासिल करने के लिए नौकरी नहीं, बल्कि अनुभव हासिल करने के लिए यात्रायें अगर जीवन का सच बन जाती, तो ज़िन्दगी कितनी हसीन होती ! पर अफसोस ये बात हम सभी के जीवन की सच्चाई नहीं हैं।