आज के इस वर्तमान समय में शिक्षा के मायने ही बदल गये हैं। लोग तो बस यही सोचते हैं कि वो पढ़-लिख लें, ताकि एक अच्छी सी नौकरी मिल जाये और जिन्दगी की नईया को काटने में कोई तकलीफ व परेशानी न हो। पहले शिक्षा जहाँ ज्ञान प्राप्ति का साधन था, वहीं आज ये नौकरी पाने का एक जरिया भर बन कर रह गया है। आजकल बहुत से लोग इसलिए शिक्षित, नहीं होना चाहते क्योंकि उनकी किसी विशेष विषय में रूचि है या वे उसके बारे में जानना चाहते हैं, बल्कि वो तो बस इसलिए शिक्षित होते हैं क्योंकि वे अपने भविष्य को सुरक्षित रखना चाहते हैं। भले ही उनकी अपने पढ़े हुए विषय के बारे में जानकारी न के बराबर हो। ऐसे लोगों के लिए ज्ञान से ज्यादा डिग्री का महत्व होता है। वो तो बस अच्छी से अच्छी डिग्री को हासिल करने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। चाहे इसके लिए उनको कितने भी रूपये क्यों न देने पड़े हों। अभिवावकों की स्थिति भी यही है, वो भी अपने बच्चों का एडमिशन पैसे-रूपये देकर किसी बड़े काॅलेज में करा देते हैं और सोचते हैं कि एडमिशन होने के बाद तो नौकरी मिल ही जायेगी। नहीं मिली तो फिर रूपये कब काम आयेंगे।
भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए नौकरी भी जरूरी है, लेकिन शिक्षा का इस कदर मजाक क्यों। क्यों लोग आजकल इसका सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं ? सिर्फ डिग्रियों को महत्व देने वाले ऐसे लोग जब किसी जगह पर काम करने के लिए जाते हैं, तो वहाँ कि गुणवत्ता को तो प्रभावित करते ही हैं, साथ में अपने आस-पास के वातावरण को भी दूषित करते हैं। यदि ऐसे लोग अध्यापन के क्षेत्र में चले गये, फिर तो पूछना ही नहीं है। सरकारी प्राइमरी व माध्यमिक विद्यालयों का हाल तो हम सबको पता ही है। यहाँ पर शिक्षक पढ़ाने के उद्देश्य से कभी नहीं आते हैं। वे तो बस यहाँ पर आकर किसी भी तरह समय काटते हैं। फिर भी सरकार इन पर करोड़ों रूपये फूँक रही है व इनको तमाम सुविधायें उपलब्ध करा रही है। ऐसे ही लोगों कि वजह से हमारे देश में शिक्षा का स्तर दिनों पर दिन गिरता जा रहा है।
हमारे देश में हर साल हजारों की संख्या में इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स ग्रेजुएट होते हैं, लेकिन इनमें से कितने ऐसे हैं, जिनकी वास्तव में इस क्षेत्र में रूचि होती है। यदि देखा जाए तो यह संख्या बहुत ही कम है। वे इसे या तो इसलिए पढ़ रहे होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस कोर्स को पूरा करने के बाद उन्हें एक अच्छी नौकरी मिल जायेगी या यदि वे जानते भी हैं कि उनकी इस क्षेत्र में रूचि नहीं है, फिर भी अभिवावक के दबाव में आकर उन्हें ऐसा करना पड़ता है। परिणाम यह होता है कि कोर्स को पूरा कर लेने के बाद भी वे बेरोजगार होते हैं। यदि ऐसे लोग शिक्षा को नौकरी पाने का जरिया न मानकर ज्ञान प्राप्ति का साधन मानें व उसी क्षेत्र में अपना करियर बनाये, जिनमें उनकी रूचि हो तो कितना अच्छा है। बहुत से लोग पुराने परंपरागत कोर्सों जैसे इंजीनियरिंग, डाॅक्टरी को ही सही मानते है और सोचते हैं कि इसी से भविष्य सुरक्षित रह सकता है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। संगीत, नृत्य, कला जैसे अलग क्षेत्र भी शिक्षा के ही एक भाग हैं। ऐसा नहीं है कि जिसने B.Tech, MBBS, LLB, PHD किया हो वही शिक्षित हो। अपने क्षेत्र में कुशल होना ही वास्तविक शिक्षा है। चाहे व सामाजिक क्षेत्र हो या फिर कुछ और।
मैंने बहुतों को तो यह कहते भी सुना है कि जिन्दगी भर पढ़ते व सीखते ही रहोगे क्या। वे यह नहीं जानते कि जीवन पर्यन्त पढ़ते व सीखते रहने से हमारे अपने ही ज्ञान में वृद्धि होगी। सोचिये जरा यदि नौकरी मिल जाने के बाद हम पढ़ना, लिखना और कुछ सीखना छोड़ दें, और जिन्दगी काटते-काटते एक दिन इस दुनिया को अलविदा कह दें तो इसका कोई फायदा है। इससे अच्छा है कि हम रोज कुछ न कुछ पढ़ते व सीखते रहें व इस दुनिया को एक नये नजरिये से देखें व समझें।
भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए नौकरी भी जरूरी है, लेकिन शिक्षा का इस कदर मजाक क्यों। क्यों लोग आजकल इसका सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं ? सिर्फ डिग्रियों को महत्व देने वाले ऐसे लोग जब किसी जगह पर काम करने के लिए जाते हैं, तो वहाँ कि गुणवत्ता को तो प्रभावित करते ही हैं, साथ में अपने आस-पास के वातावरण को भी दूषित करते हैं। यदि ऐसे लोग अध्यापन के क्षेत्र में चले गये, फिर तो पूछना ही नहीं है। सरकारी प्राइमरी व माध्यमिक विद्यालयों का हाल तो हम सबको पता ही है। यहाँ पर शिक्षक पढ़ाने के उद्देश्य से कभी नहीं आते हैं। वे तो बस यहाँ पर आकर किसी भी तरह समय काटते हैं। फिर भी सरकार इन पर करोड़ों रूपये फूँक रही है व इनको तमाम सुविधायें उपलब्ध करा रही है। ऐसे ही लोगों कि वजह से हमारे देश में शिक्षा का स्तर दिनों पर दिन गिरता जा रहा है।
हमारे देश में हर साल हजारों की संख्या में इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स ग्रेजुएट होते हैं, लेकिन इनमें से कितने ऐसे हैं, जिनकी वास्तव में इस क्षेत्र में रूचि होती है। यदि देखा जाए तो यह संख्या बहुत ही कम है। वे इसे या तो इसलिए पढ़ रहे होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस कोर्स को पूरा करने के बाद उन्हें एक अच्छी नौकरी मिल जायेगी या यदि वे जानते भी हैं कि उनकी इस क्षेत्र में रूचि नहीं है, फिर भी अभिवावक के दबाव में आकर उन्हें ऐसा करना पड़ता है। परिणाम यह होता है कि कोर्स को पूरा कर लेने के बाद भी वे बेरोजगार होते हैं। यदि ऐसे लोग शिक्षा को नौकरी पाने का जरिया न मानकर ज्ञान प्राप्ति का साधन मानें व उसी क्षेत्र में अपना करियर बनाये, जिनमें उनकी रूचि हो तो कितना अच्छा है। बहुत से लोग पुराने परंपरागत कोर्सों जैसे इंजीनियरिंग, डाॅक्टरी को ही सही मानते है और सोचते हैं कि इसी से भविष्य सुरक्षित रह सकता है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। संगीत, नृत्य, कला जैसे अलग क्षेत्र भी शिक्षा के ही एक भाग हैं। ऐसा नहीं है कि जिसने B.Tech, MBBS, LLB, PHD किया हो वही शिक्षित हो। अपने क्षेत्र में कुशल होना ही वास्तविक शिक्षा है। चाहे व सामाजिक क्षेत्र हो या फिर कुछ और।
मैंने बहुतों को तो यह कहते भी सुना है कि जिन्दगी भर पढ़ते व सीखते ही रहोगे क्या। वे यह नहीं जानते कि जीवन पर्यन्त पढ़ते व सीखते रहने से हमारे अपने ही ज्ञान में वृद्धि होगी। सोचिये जरा यदि नौकरी मिल जाने के बाद हम पढ़ना, लिखना और कुछ सीखना छोड़ दें, और जिन्दगी काटते-काटते एक दिन इस दुनिया को अलविदा कह दें तो इसका कोई फायदा है। इससे अच्छा है कि हम रोज कुछ न कुछ पढ़ते व सीखते रहें व इस दुनिया को एक नये नजरिये से देखें व समझें।